Thursday 23 March 2017

देखो ज़रा देखो

देखो भाई देखो
ज़रा इनको भी देखो
हाथ जोड़े खड़े हैं 
खीस निपोरे खड़े हैं 
पैर पकड़े खड़े हैं 
उलटे लटके खड़े हैं 

स्वार्थ में लिप्त खड़े हैं 
परमार्थ से तृप्त खड़े हैं 
लाभ दिखता जहाँ भी 
सेवा में विक्षिप्त खड़े हैं

सामाजिकता से रोगग्रस्त हैं 
सबसे बनाये रखने में व्यस्त हैं 
सच कहने - सुनने से डरते हैं
हर बात पर हामी भरते हैं

सुख में हिस्सेदार बने हैं 
दुःख में सबसे दूर खड़े हैं 
बहानों की लंबी सूची लिए 
देखो तो कैसे हितैषी बने हैं 

विचलित ये मन, हौले से कहे है
ये इंसान  नहीं हैं, बस मुखौटे चढ़े हैं 

देखो भाई देखो
कोई इनको भी देखो 
ख़ुद को भूले खड़े हैं 
रीढ़ के बिन पड़े हैं

हाथ जोड़े खड़े हैं 
खीस निपोरे खड़े हैं 
पैर पकड़े खड़े हैं 
उलटे लटके खड़े हैं

देखो भाई देखो...

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