Friday 9 December 2016

फिर खो गयी मैं

आज फिर तुममे खो गयी मैं
निहारती रही तुम्हे निःशब्द
एकाग्रचित यथास्थान खड़ी मैं
भर गया मन रोमांच से, गर्व से
देखकर तुम्हारा वो युद्ध कौशल
आशांवित तुम्हारी विजय को
टकटकी लगाए यूँ मौन खड़ी मैं

पल - पल बदलते तेवर
हर  क्षण  आक्रामक  भाव
आत्मरक्षण को संघर्षरत तुम
दमकते रहे फिर भी  कुंदन से
न भय, न तनाव, न हतोत्साह
बस असीम आत्मविश्वास और
एक आकर्षक तेजमय मुस्कान
उस मोहक रूप की दासी बनी मैं

निहारती रही तुम्हे निःशब्द
एकाग्रचित यथास्थान खड़ी मैं
आज फिर तुममे खो गयी मैं
आज फिर तुममे खो गयी मैं

उबर सके उस चक्रव्यूह से, तुम ,
बन कर एक कांतिवान विजेता
समेटे उस समस्त कालिमा को
अपने उज्जवल विशाल अंतर में
उस  अप्रतिम  विजय  की
तब  सहर्ष  साक्षी  रही  मैं
प्रफुल्लित, उत्साहित, गौरान्वित
निहारती रही तुम्हे बस निःशब्द
एकाग्रचित यथास्थान खड़ी मैं
आज फिर तुममे खो गयी मैं

आज फिर तुममे खो गयी मैं...