ना गुड्डे थे ना गुड़िया थी
ना मोटर चाभी वाली थी
एक छोटा सा घर था मेरा
उसमे एक छोटी सी क्यारी थी
ना मोटर चाभी वाली थी
एक छोटा सा घर था मेरा
उसमे एक छोटी सी क्यारी थी
अम्मा उस क्यारी में हमको
हर रोज़ जुटाया करतीं थीं
धनिया, मिर्चा, पयाज़, पुदीना
ना जाने क्या क्या उगाया करतीं थीं
पर मेहनत करने पर जी भर कर
बर्फ चीनी खिलाया करतीं थीं
पर मेहनत करने पर जी भर कर
बर्फ चीनी खिलाया करतीं थीं
और बाबा घर आते थे जब तो
अंगीठी पर भुट्टे भूने जाते थे
अमरुद के पत्तों पर तब लहसुन की चटनी परोसी जाती थी
ना गुड्डे थे ना गुड़िया थी...
एक छोटा सा घर था मेरा...
एक छोटा सा घर था मेरा...
घर के पीछे वाले अहाते में
हम सब जामुन तोड़ा करते थे
और ज़्यादा ऊंचे चढ़े पेड़ पर
तो बाबा डाँटा करते थे
तो बाबा डाँटा करते थे
अल्हड़पन और बेफिक्री में
तब दिन बिताये जाते थे
भुट्टे, अमरुद, बेर, जामुन को, हर शाम लुभाती जाती थी
ना गुड्डे थे ना गुड़िया थी...
एक छोटा सा घर था मेरा...
सावन के पहले ही दिन सब
लकड़ी के पटरे ढूंढ़ा करते थे
बरगद पर झूला पड़ता था
ढेरों बच्चे झूला करते थे
ना तेरा था ना मेरा था
बस पेंग बढ़ाते जाते थे
सावन की मस्ती में भर कर, सुर-ताल मिलायी जाती थी
ना गुड्डे थे ना गुड़िया थी...
एक छोटा सा घर था मेरा...
पीपल की सर सर को सुन कर
तब मस्ती से सो जाते थे
सूरज की किरणों से पहले
हम, चिड़िया से बतियाते थे
चादर ताने पड़े रहे तो, चाचा
चादर ताने पड़े रहे तो, चाचा
मुंह पर पानी डाला करते थे
फिर, डाँट डपट और लाड प्यार से, हमारी तक़दीर सँवारी जाती थी
ना गुड्डे थे ना गुड़िया थी...
एक छोटा सा घर था मेरा...
एक छोटा सा घर था मेरा...
छोटे से दो कमरों को माँ
दिन भर चमकाया करती थी
चिटकी फर्शों को देख - 2
दिन भर चमकाया करती थी
चिटकी फर्शों को देख - 2
थोड़ा झल्लाया करती थी
पर मेरे उस शीश महल में
पर मेरे उस शीश महल में, हर एक छोटी चीज़, जगह पर पायी जाती थी
ना गुड्डे थे ना गुड़िया थी
ना मोटर चाभी वाली थी
एक छोटा सा घर था मेरा
उसमे एक छोटी सी क्यारी थी