कुछ था मुझमें जो तुम्हारे साथ चला गया
तुम्हारा अक्स, तुम्हारी परछाईं ढूंढ़ती हूँ
तुम्हारी यादों की सीपी को मुठ्ठी में बाँधें
लड़खड़ाते पाँवों से हर रोज़ बढ़ती हूं
जानती हूँ की इस सीप से अब फ़िर
कभी कोई मोती नहीं निकलेगा
कभी कोई मोती नहीं निकलेगा
कहते थे तुम लिखती रहना
मेरे लफ़्ज़ , वो अल्फ़ाज़ जो
मन के किसी कोने में बिखरें हैं
को बड़ी मुश्किल से बीनती हूँ
तरसती हूँ जब तुम्हें इक पल देखने को
तो बस धीरे से ये आँखें मूँद लेती हूँ
देखती हूँ तुम्हे नन्हे-२ पाँवों से
किसी के आँगन में खेलते
किसी के आँगन में खेलते
सोचती हूँ एक प्यारी सी माँ होगी
जो तुम्हारे माथे को सहलाती होगी
तुम्हे मीठी-२ लोरियाँ सुनाती होगी
शायद कोई चंचल सी बहन होगी
जो बात-बात पर लाड़ दिखाती होगी
रूठते होगे तुम तो बाँहे गले में डाल
बड़े प्यार से झूल जाती होगी
इतने में ही आँखों से कुछ मोती
मेरी बंद मुठ्ठी पर टपक जाते हैं
मेरी बंद मुठ्ठी पर टपक जाते हैं
और होंठों पर हल्की सी मुस्कान
लिए, मैं फिर जी पड़ती हूँ
लिए, मैं फिर जी पड़ती हूँ
कुछ लोग कहते हैं मैं कमज़ोर हूँ
पर क्या किसी को अपनी हर साँस में
ज़िंदा रख पाना साहस नहीं ?
कौन जाने? शायद हो भी, पता नहीं
एक सन्नाटा सा पसरा है हर ओर अब
और इसी चादर को ओढ़े मैं सोती हूँ
तुम्हारी यादों की सीपी को मुट्ठी में
एक सन्नाटा सा पसरा है हर ओर अब
और इसी चादर को ओढ़े मैं सोती हूँ
तुम्हारी यादों की सीपी को मुट्ठी में
भींचे हर रोज़ गिरती-सम्हलती हूँ
वो लफ़्ज़, वो अल्फ़ाज़ जो न जाने
कहाँ गुम हो गए,को खोजती-बुनती हूँ
कहते थे तुम लिखती रहना, सिर्फ
इसलिए एक बार फिर लिखती हूँ
कहाँ गुम हो गए,को खोजती-बुनती हूँ
कहते थे तुम लिखती रहना, सिर्फ
इसलिए एक बार फिर लिखती हूँ
कुछ था मुझमें जो तुम्हारे साथ चला गया
तुम्हारा अक्स, तुम्हारी परछाईं ढूंढ़ती हूँ...