Saturday 27 September 2014

एहसास

ना जाने क्यूँ  
ये ज़िन्दगी  उदास है 
आखिर इस दिल को 
किसकी तलाश है 
चलते चलते इन 
टेढ़े मेढ़े रास्तों पे 
अचानक क्यूँ लगा कि 
ये तेरी ही आवाज़ है 
क्या लाज़मी है मेरा 
यूँ मुड़ के देखना 
तेरे एहसास को 
यूँ खुद में समेटना 
या चलते रहना चाहिए 
सब नज़र अंदाज़ करके 
कभी देखे थे जो सपने 
उन्हें आँखों में भरके 
ये इश्क भी दोस्तों 
बहुत मुश्किल है 
हज़ारों ख्वाइशों में दबा 
इक नन्हा सा दिल है 

Sunday 21 September 2014

मंथन

मानवता के पथ पर चल के
कभी कभी डर जाता  है 
भेद न जाएं हृदय को इसके 
इस विचार से घबराता है 

ख़ूब सचेता और समझाया 
कि इस दुनिया की रीत यही है 
रौंध के सबको आगे बढ़ना 
अब मानव की जीत नयी है 

सुनो!!! रहो न तुम विचलित
लोगों के अप्रत्याशित व्यवहारों से 
शब्द-बाण, कुछ व्यंग, कटाक्ष की
लम्बी लम्बी तलवारों से 

बदल सका जो तुझे ज़माना 
तो फिर तुझमें वो बात कहाँ
विषमताओं को अपना माना
तो तुझसा फिर विरवान कहाँ

ऐसे मौके भी आएंगे जब 
खुद को खड़ा अकेले पायेगा 
भ्रम टूटेंगे सब तेरे तब  
तू खुद को ही झुट्लायेगा 

धैर्य न खोना, धर्म न खोना 
हर कठिन घड़ी भी जाएगी 
जीवन की हर मुश्किल तुझे 
और अधिक सबल बनाएगी

जीवन का हर कठिन छण 
मानव उत्थान का अध्याय है 
ईश्वर के  हर संकेत का 
निश्चित ही एक अभिप्राय है 

बढ़ चल निर्भय निडर अडिग
जीवन के इस दुर्लभ पथ पर 
उबर पायेगा हर त्रास  से 
निश्चय ही तू अपने दम पर