Thursday 10 July 2014

पिता

यह 'पिता' शब्द कुछ खास है,
इसमें भावनाओ की एक अलग ही मिठास है|

जो बिटिया की नयी पेन्सिल के लिए
भरी बारिश में चला जाता है,
जो गुड़िया खिलौने ला लाकर
अपनी जेबें खाली करवाता है,
जो बच्चों की पसंद नापसंद के कारण
बाज़ार के दसियों चक्कर लगाता है,
जो दिन भर के संघर्ष के बाद भी
घर खाली हाथ नही आता है,
और जो हर रात एक अतिरिक्त घंटा
आने वाले खर्चों की गणित में बिताता है,
किंतु फिर भी अपनी आमदनी 
अपने बच्चो से छिपता है |वो हैं पिता 

यह 'पिता' शब्द कुछ खास है,
इसमें भावनाओ की एक अलग ही मिठास है|

जो अपनी भावनाओ को आँसुओं से नही
बस एक सौम्य मुस्कान से दिखाता है,
जो अपनी आँखों के पानी का कारण 
हमेशा धूल का एक कण बताता है,
जो खराब तबीयत को छुपाने के लिए
अक्सर फोन पे नही आता है,
और अपनी भर्रायी हुई आवाज़ को
कई बार खाँसी में छुपाता है,
जो हर त्योहार पर 
चुपचाप आँसू बहाता है 
किंतु सामने पड़ने पर 
पहले माँ को चुप कराता है |वो हैं पिता 

यह 'पिता' शब्द कुछ खास है,
इसमें भावनाओ की एक अलग ही मिठास है|

जो अपनी इच्छाओं को त्याग कर
पूर्ण निस्वार्थ भाव से 
परिवार का दायित्व उठाता है,
जो संतान के सुनहरे भविष्य के लिए
अपना सारा जीवन बिताता है,
जो आवश्यकता पड़ने पर
इस समाज से भी लड़ जाता है,
और प्रत्येक विषम परिस्थिति में
चट्टान जैसे डॅट जाता है |वो हैं पिता

यह 'पिता' शब्द कुछ खास है,
इसमें भावनाओ की एक अलग ही मिठास है|

जो अपनी बेटियों को भी 
बेटों जैसा बनाता है,
जो उन्हे इस समाज की
विषमताओं से अवगत कराता है,
जो उनको अपना जीवन 
सर उठा के जीना सिखाता है,
फिर भी उनकी असुरक्षा के भय से
रातों को सो नही पाता है |वो हैं पिता

यह 'पिता' शब्द कुछ खास है,
इसमें भावनाओ की एक अलग ही मिठास है|

जो बीमार शरीर में भी खुद खड़े होकर
बिटिया का मंडप लगवाता है,
जो सारे इंतज़ामों को स्‍वयं
जा जाकर सम्हालता है,
जो बेटी की विदाई में पीछे पीछे
काफी दूर तक जाता है,
किन्तु वापस लौटते हुए उससे
आँखें नही मिलाता है |वो हैं पिता

यह 'पिता' शब्द कुछ खास है,
इसमें भावनाओ की एक अलग ही मिठास है|

वैसे माँ तो अतुलनीय है,
उसका अद्भुत प्रेम तो
सुबह की चाय से लेकर
दाल-रोटी में अतिरिक्त घी
और सर पे तेल जैसी 
हर चीज़ में दिख जाता है,
लेकिन पिता? पिता तो अपनी
बाह्य कठोरता में ही शोभनीय हैं,
उनका प्रेम तो बस कंधे पे एक हल्का सा हाथ
या सोते में चश्मा निकालने से ही झलक जाता है

इसीलिए! यह 'पिता' शब्द बहुत ही खास है,
इसमें भावनाओ की एक अलग ही मिठास है|

Wednesday 9 July 2014

मातृत्व

मेरे लल्ला मेरे सोना
हम सब का तुम प्रिय खिलौना
सौम्य सलोना तेरा चेहरा 
करता है इस प्रेम को गहरा
जब से तुम आए जीवन में
बिखरे कितने रंग हैं मन में
तुझसे हँसना तुझसे रोना
लगता है ये स्वप्न सलोना
तेरी यह भोली मुस्कान
लाती है नित नव अरमांन
देर रात को उठ कर तुमने
जब दी एक प्यारी मुस्कान
मानो इस मृत शरीर में 
तुमने फूँक दिए हो प्राण
भरा तेरी किलकरियों से
जब मेरा सूखा आँगन
लगा झूम के इस प्यासे मंन में
फिर से आया सावन
जो प्रेम, मोह, ममता आई है
सब कुछ तुमसे ही पाई है
प्यारे लल्ला भोले लल्ला
तुममे बस्ते मेरे प्राण
ईश्वर रूप बसा है तुममे 
तुम हो मेरे कृष्ण समान
खूब फलो तुम, खूब बढ़ो तुम
बस करना कुछ ऐसा काम
इस धरती से उस अंबर तक
गूँजे एक तेरा ही नाम
ढेर प्रेम आशीष मोह से
देती हूँ इतना वरदान
कुश कुशाग्र कैवल्य प्रियांश तुम
चमको बन मानस महान