Tuesday 27 November 2018

मैंने छोड़ दिया

अपने अंतर्मन, स्थितियों में परिवर्तन
से मैंने लड़ना छोड़ दिया
जो पाया उस पर ख़ुद को अर्पण
जो रहा शेष का मंथन छोड़ दिया

अपने अंतर्मन...

चलती रही प्रगतिपथ पर,
तीव्रतम वेग से
हर क्षण जीने को एक मादक संवेग से
पाँवों की कम्पन, श्वासों की टूटन
का मैंने क्रन्दन छोड़ दिया

अपने अंतर्मन...

पावन  मन  से  स्वकर्म  किया
पीड़ा, अपमान का विष भी पिया
अब प्रियजन के आक्षेपों का
यूँ मैंने खण्डन छोड़ दिया

अपने अंतर्मन, स्थितियों में परिवर्तन
से मैंने लड़ना छोड़ दिया