Tuesday 11 November 2014

चिरैय्या

रंग बिरंगे पंखों वाली
फुदक-२ कर चलने वाली
ओ नन्ही प्यारी सी चिड़िया
तू मेरे अंगना कब आएगी?

सुबह शाम मैं नयन गड़ाए
उस विस्तृत नीले अम्बर पर
तकती हूँ निज आस लगाए
तू एक झलक कब दिखलाएगी?

ओ नन्ही प्यारी सी चिड़िया
तू मेरे अंगना कब आएगी?

नही मैं उन इन्सानों में से
डाल के कुछ दाने धरती पर
करते हैं क़ैद पिंजरे में तुझको
नित निज मन बहलाने को

मेरा उर तो आनंदित होता
तेरी मीठी सी बोली सुनकर
तेरा चलना वो फुदक-२ कर
तेरा उड़ना वो निर्भय होकर

है विश्वास मुझे इक दिन तू 
तोड़ के पिंजरा उड़ जाएगी
ओ नन्ही प्यारी सी चिड़िया
तू मेरे अंगना कब आएगी?

तेरी निश्छलता और निर्भयता
मुझको कुछ प्रेरित कर जाती
कहती है एक झलक तेरी के
शायद मैं तुझ सी बन पाती

यद्यपि  यह  सम्भव  नही
फिर भी इस चित्त की शांति तो
है; तुझसी चंचलता,  निर्भयता
स्वछन्दता और गति में ही

बस माँगूं मैं तुझसे इतना
क्या मुझको साथ उड़ा पाएगी?
ओ नन्ही प्यारी सी चिड़िया
तू मेरे अंगना कब आएगी?

ओ सखी! जाने अन्जाने सही
पर हममें एक समानता है
हम दोनो को क़ैद करने यहाँ
अनगिनत शिकारियों का ताँता है

शायद इसलिए, ना चाह कर भी
मैं तुझमें खुद को देखती हूँ
बन्द आँखों से उस विस्तृत
विशाल गगन को भेदती हूँ

और शायद इसलिए ही
सुबह शाम मैं नयन गड़ाए
उस विस्तृत नीले अम्बर पर
तकती हूँ निज आस लगाए
तू एक झलक कब दिखलाएगी?

ओ नन्ही प्यारी सी चिड़िया
तू मेरे अंगना कब आएगी?