आज फ़िर त्यौहार है
पकवान हैं, मिठाईयाँ हैं, शोर- शराबा है
पर तुम नहीं हो
रक्षाबंधन है तो क्या हुआ?
बुआ की भेजी राखी तो हम ही बांधते थे
रोली टीका चन्दन भी हम ही लगाते थे
टीके के वक़्त हर बार
तुम्हारे चौड़े माथे का ज़िक्र होता
और तुम हँस कर कहते
'मैं बहुत भाग्यशाली हूँ ना, दीर्घायु हूँ'
हर बार रोटी और पूरी पर चर्चा होती
तुम कहते 'अरे एक दिन हम भी पूरी खा लेंगे,
इन्सुलिन ही तो है थोड़ी सी डोज़ बढ़ा लेंगे'
और हम कहते नहीं-नहीं हम सब रोटी खाएंगे
पूरी खाने से मोटे ही हो जायेंगे
तुम चिढ़ जाते 'अरे त्यौहार है
एक-आध लड्डू से कुछ नहीं होगा'
और हम छोटी सी कटोरी में
एक चौथाई टुकड़ा ले जाते
तुम बुझे मन से देखते
पर फ़िर कुछ नहीं कहते
कई बार देर रात में
तुम्हे फ़्रिज में कुछ ढूँढ़ते देखा
पकड़े जाने पर तुम सकपका जाते
'खाया नहीं बस टेस्ट किया है'
कह के वापस चले जाते
जानते हो! अब घर में सब कुछ बनता है
खाने- बनाने पे कोई चर्चा नहीं होती
किसी को कोई परहेज़ नहीं
पर किसी चीज़ में कोई स्वाद भी नहीं
मिठाईयाँ और त्यौहार सब फ़ीके हैं
ख़ैर! तुम चिंता मत करना
जहाँ भी हो बस बिंदास रहना
हम सबने आदत डाल ली है
अब मैं चलती हूँ,
राखी की थाली भी तो सजानी है
थोड़ी बहुत मिठाईयाँ भी बनानी हैं
दुनिया की हर रीत निभानी है
और तुम भी तो हमेशा यही चाहते थे
आज फ़िर त्यौहार है
पकवान हैं, मिठाईयाँ हैं, शोर- शराबा है
और साथ ही कुछ ख़ालीपन भी