Saturday 27 September 2014

एहसास

ना जाने क्यूँ  
ये ज़िन्दगी  उदास है 
आखिर इस दिल को 
किसकी तलाश है 
चलते चलते इन 
टेढ़े मेढ़े रास्तों पे 
अचानक क्यूँ लगा कि 
ये तेरी ही आवाज़ है 
क्या लाज़मी है मेरा 
यूँ मुड़ के देखना 
तेरे एहसास को 
यूँ खुद में समेटना 
या चलते रहना चाहिए 
सब नज़र अंदाज़ करके 
कभी देखे थे जो सपने 
उन्हें आँखों में भरके 
ये इश्क भी दोस्तों 
बहुत मुश्किल है 
हज़ारों ख्वाइशों में दबा 
इक नन्हा सा दिल है 

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