Sunday 21 September 2014

मंथन

मानवता के पथ पर चल के
कभी कभी डर जाता  है 
भेद न जाएं हृदय को इसके 
इस विचार से घबराता है 

ख़ूब सचेता और समझाया 
कि इस दुनिया की रीत यही है 
रौंध के सबको आगे बढ़ना 
अब मानव की जीत नयी है 

सुनो!!! रहो न तुम विचलित
लोगों के अप्रत्याशित व्यवहारों से 
शब्द-बाण, कुछ व्यंग, कटाक्ष की
लम्बी लम्बी तलवारों से 

बदल सका जो तुझे ज़माना 
तो फिर तुझमें वो बात कहाँ
विषमताओं को अपना माना
तो तुझसा फिर विरवान कहाँ

ऐसे मौके भी आएंगे जब 
खुद को खड़ा अकेले पायेगा 
भ्रम टूटेंगे सब तेरे तब  
तू खुद को ही झुट्लायेगा 

धैर्य न खोना, धर्म न खोना 
हर कठिन घड़ी भी जाएगी 
जीवन की हर मुश्किल तुझे 
और अधिक सबल बनाएगी

जीवन का हर कठिन छण 
मानव उत्थान का अध्याय है 
ईश्वर के  हर संकेत का 
निश्चित ही एक अभिप्राय है 

बढ़ चल निर्भय निडर अडिग
जीवन के इस दुर्लभ पथ पर 
उबर पायेगा हर त्रास  से 
निश्चय ही तू अपने दम पर 

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